यहाँ से कुछ दूर (Yahan Se Kuch Dur)

school girl lost in thought
“यहाँ से कुछ दूर, बैठे हैं इंतज़ार में यार मेरे…”

यहाँ से कुछ दूर स्कूल की सीढ़ियों में,
शायद बैठे होंगे अब भी यार मेरे,
होगा कोई बीमार प्यार में तो कोई किताबों का सिरदर्द पाले होगा,
कोई होगा बेंच बजता तो कोई नोटबुक के आँखरी पाने को रंगो से भरता होगा,

यहाँ से कुछ दूर,
मस्जिद की आज़ान सुनाई देती है जहाँ,
आने वाले कल की बातें अब भी होती होंगी,
ऐसा करेंगे, वैसा करेंगे,
सपनो में करवट लेती रातें होंगी,

यहाँ से कुछ दूर,
जेब में पैसों की किल्लत जारी होगी,
दो-दो रुपए जमा करके दुकान से गेंद अभी लाई होगी,
साइकल की पंक्चर ठीक करता होगा कोई,
तो कोई लड़कियों के लिए बाज़ार के चक्कर लगाता होगा,



यहाँ से कुछ दूर,
यार अब भी जमा हो जाते हैं मेरे घर के बाहर,
कोई चिल्लाता है नाम लेकर तो कोई,
चारपाई से घसीट ले जाता है,
कोई वजह नही,
वक़्त की कोई फ़िक्र नही,
बस जाना है कहीं घूमने,

और अगर कल मैं रुक्सत हो जाऊँ इस जहाँ से
तो यारों गम ना करना,
मैं फिर आउँगा के,
यहाँ से कुछ दूर,
बैठे हैं इंतज़ार में यार मेरे…

-N2S
01022014

बचपन (Childhood)

two-school-kids
“बारिश में जो मैं निकलूं,
बीघे बसतों में बचपन गुन्छे”

बस यूँही ऐसे, कोई ना कुछ पूछें,
बारिश में जो मैं निकलूं,
बीघे बसतों में बचपन गुन्छे,
सड़क पर दौड़ुँ, जूतों में गीले मोजे,
चश्मे पर पानी की बूंदे, जुल्फे माथे को ढक लें,
मेरे यार का टूटा बैट, चलो साथ मिलकर गेंद ढूँढे,
हाथ छोड़कर की साइकल की सवारी,
घुटने की चोट पर डेटोल और रुई लगाई,

सफेद पन्नो पर सिहाई फैले,
छोटू मेरे बिस्तर को फिर गीला करे,
धूप में सूखने को आम की कैरी रखी,
डॅडी की तीन रुपए की बीड़ी से मिले दो रुपये छूटे,
शाम को गुज़रे जो आइस-क्रीम वाले का ठेला,
लेना है लाल बर्फ का गोला,
गुलाबी होंठों का लाल रंग,
सिर्फ़ दो पल ठहरे,
छत पर करना है टीवी का अंटीना सीधा,



पड़ोस में मोटू अंकल की बेटी की दोमुँही चोटी,
हँसती है जो करके आँखे छोटी-छोटी,
ना जाने क्यूँ अच्छा लगता है उसे मेरी पीठ पर चढ़ जाना,
मेरे बाल बिगाड़कर मेरे गाल खींचना,
दौड़ने में टूटी मेरे चप्पल की फिती,
ना जाने कब आएगी सनडे की छुट्टी,
गर्मियों में जामुन के पेड़ों पर हमारी वानर सेना टूटी,
नये किताबों की खुशबु मीठी मीठी,

टीचर का डाँटकर मुर्गा बनाना
अच्छी लगती है रिसेस की घंटी,
टिफिन में मैगी नही तो जाम और रोटी,
रात को मम्मी की गोद में ना जाने कब नींद आए,
की कल सुबह फिर निकलना है, बिना किसी से पुछे…

-N2S
28052013

The Best Idiots in the World

Funny Poem about Best Friends

Best Friends
“Every day I will remember the best idiots in world…”

My tangled hair with the weird hairstyle,
The boys are calling, Sats arrived with his usual smile,
Maks is paying for the Conty’s hot non-veg soup,
There is Buddha proud of his Basketball shoot,
Ajink is missing; perhaps he needs a beat,
Through Temple hill, to the Deolali street,
My first cigarette, my first beer,
My first educational movie with the Sats where Maks was shedding his tears,
He is heartbroken over his first love,
She is Eagle Gym’s neighbor,



My first crush has the cutest smile in the world,
I would lose my chance if I would profess my love,
Nits has brought her bullet to the tuition too,
Mamta messaging me, I have been using a phone booth,
My first fight at the school ground, my unusual adolescence,
There go my school days and my childish innocence,
Perhaps not every day I will remember the best idiots in the world,
But again not a day goes by when I don’t miss them,
or perhaps it’s the beer talking…

-N2S

School Reunion 2014

School Reunion 2014 is a short video celebrating the reunion of old classmates of K.V. No. 1 Deolali-Camp. These friends meet after a period of nearly a decade and walk again in the corridors of their beloved school. They discuss how life has changed, laugh, play and argue just like old times. They are not sure if they will see each other soon or when they will plan next reunion. But whatever they will go, wherever they will go, they will also carry a part of their school life with them. Watch the video to relive a moment of your childhood innocence and friendship…revisit your school days…



Kaash Main Bada Na Hota

Empty Swings
“काश मैं कभी बड़ा ना होता,
तो शायद बचपन की खुशियाँ रद्दी में ना जाती…”

बताया था किसी ने की उम्र के इस पड़ाव में
जेब में सिक्के नही होते,
खुशियों की कीमत हो जाती है इतनी की
वे ठेलों या गली-कूचों में नही बीकते,
कभी हथेली से भी बड़े दिखते थे जो सिक्के,
अब वे उंगलियों में गुम हो जाते हैं
पर एक-एक कर गुल्लक में नही गिरते,

अब कोई मेरी पेन्सिल नही चुराता,
नोटबुक के आँखरी पन्ने को कोई खराब नही करता,
शाम को नही निकलता मैं खेलने,
की ज़िंदगी की छुपन-चुपाई में छिपे बैठे हैं
सब यहीं कहीं,
चले जाते हैं कुट्टी करके जो यार अब,
बटी करने वापिस नही आते,



रात में जो कभी नींद आ जाती है फर्श पर,
तो फर्श पर ही सुबह होती है,
की कंधे पर रखकर
बिस्तर पर सुलाने कोई नही आता,
जो हाथ संवारते थे बाल मेरे,
आज उन हाथ में मेरा सर नही आता,
अच्छा भी है की कोई कान नही खींचता,
कोई मुर्गा नही बनाता,
पर जो अब ग़लती करता हूँ मैं,
कोई समझाकर ग़लती ठीक करने की मोहल्लत नही देता,

घर की चीज़ें खिलोना नही बनती,
शब्द गीतों में तब्दील नही होते,
नाचने के लिए मौकों की इज्जाज़त लेनी पड़ती है,
और दीवारों पर रंग नही चढ़ता,
कभी सोचता हूँ की काश मैं कभी बड़ा ना होता,
तो शायद बचपन की खुशियाँ रद्दी में ना जाती…

-N2S