ज़िक्र कर लेना ज़रा सा (Jikr Kar Lena Zara Sa)

crops and sunset
“ना मिलने पर कोई जवाब, जो तुम्हे रोना आए,
तो फ़िक्र करना, फ़िक्र करना तुम ज़रा सा,”

सुनहरी धान के खेतों से बहती हवा जो,
शाम को खुद में बाँधकर लाए,
सूरज थककर जो बैठे साँस लेने को,
और रात अपनी बाँहों में तुझे भरने को आए,
मेरा ज़िक्र कर लेना, मेरा ज़िक्र कर लेना ज़रा सा,

तुम जो बैठो छत पर बालों को सहलाते हुए,
और ठंडी हवा तुमको छु जाए,
भीगो जो तुम बारिश में अपनी नीली चप्पल में,
और बूंदे तुम्हारा बदन नम कर जाए,
मुझे सोचना तुम, मुझे सोचना तुम ज़रा सा,

(Read another sad poem: राह में वो टकरा गयी)

चलो तुम सड़कों पर, बैठो जो बस में,
ढूँढे जो तुम्हारी आँखे मुझे, गुज़रे लम्हे तुम्हे याद आयें,
हाथ तरसे थामने को मेरी बाँहें,
और तुम्हे मेरी नादानियाँ याद आयें,
तो मेरी राह तकना, मेरी राह ताकना ज़रा सा,



जो कभी तुम मेरा रास्ता देखो,
मुझे हो देर और तुम्हारा दिल घबराए,
माँगना खुदा से मेरी सलामती, माँगना थोड़ी मोहल्लत,
ना मिलने पर कोई जवाब जो तुम्हे रोना आए,
तो फ़िक्र करना, फ़िक्र करना तुम ज़रा सा,

जो मैं कभी ना लौटू,
और मेरा जिस्म मेरा आँखरी खत लाए,
मेरी कब्र पर दो फूल रख देना,
शायद वो मुझे जन्नत में मिल जाए,
कभी ऐसे ही किसी दिन याद करके मुझे,
रो लेना, रो लेना तुम ज़रा सा…

-N2S
06072013

[Photo by Aperture Vintage on Unsplash]