बस मुस्कुरा देना (Bas Muskura Dena)

beautiful woman smiling
“वो वक़्त जब उनको देखते ही दिल की धड़कन तेज़ हो जाया करती थी”

किसी शाम मिल जाती है जब वो राह में,
वही खूबसूरत चेहरा और बड़ी-बड़ी भूरी आँखें,
कहता नही मैं कुछ बस ऐसे ही मुस्कुरा देता हूँ,
इस मुस्कुराहट में ना वो है और ना मैं हूँ,
ये तो बस उस वक़्त की शायद एक याद भर है,

वो वक़्त जब उनको देखते ही दिल की धड़कन तेज़ हो जाया करती थी,
और मैं उनसे मिलने की नयी नयी तरकीबें ईजाद किया करता था,
सोचता था यह कहूँगा वो कहूँगा,
उनसे दिल की सारी बातें कह डालूँगा,
पर जब वो मुस्कुराकर बात करती मुझसे,
मैं पागल, अपने सूखे होंठों को जीभ से गीला करता रहता,
दिन के हर पहर में तो थी वो ही,
और सपनो में तो उनसे ब्याह भी हो जाता,

इजहार-ए-दिल किया ना गया जैसा सोचा था,
और उन्हे भी नही थी फ़ुर्सत मेरे अरमानों को आँखों से पढ़ लेने की,
ना जाने क्या चाहिए था उन्हे,
जब मैं अपनी हर चाहत में उन्हे लिए बैठा था,
कितना माँगा उन्हे उपरवाले से,
मंदिर की चौखट भी पहुँच गया मैं नास्तिक उन्हे माँगने,
झूठ ही होगा अगर कहूँगा की रोया नही मैं अकेले अकेले,
और दो आँसू भी बह गये इस आशिक़ के
जब वा मुझे देखकर राह बदलने लगी,



हमने भी अपनी दू-पहिया मोटरगाड़ी निकाली,
और टूटे दिल को दफ़न कर आए नदी किनारे,
इस डर से के लोग कहेंगे की हमारा इश्क़ झूठा था,
मैखाने में उनके नाम के दो घूँट भी पी आया,

आज कई सालों बाद,
जब वे दिख जाती हैं उसी राह पर फिर से,
और दिल के किसी कोने से एक आशिक़ चीखने की कोशिश करता है,
मैं उसको ये समझाकर चुप कर देता हूँ,
की उनका भी कसूर नही था,

मेरी आशिक़ी को हाँसिल करे उनकी शायद ऐसी किस्मत ही नही थी,
और मेरे दिल को खरीद सके शायद उनकी इतनी हैसियत नही थी,
के अब ये दिल उनके लिए कभी नही धड़केगा,
इस पर वो आशिक़ बोल उठा,
चलो कुछ और ना सही,
उनके आने पर मुँह फेर ना लेना,
मुझे आज भी फ़िक्र है की उन्हे बुरा लगेगा
उस दौर की खातिर बस मुस्कुरा देना…
-N2S
12032014

ज़िक्र कर लेना ज़रा सा (Jikr Kar Lena Zara Sa)

crops and sunset
“ना मिलने पर कोई जवाब, जो तुम्हे रोना आए,
तो फ़िक्र करना, फ़िक्र करना तुम ज़रा सा,”

सुनहरी धान के खेतों से बहती हवा जो,
शाम को खुद में बाँधकर लाए,
सूरज थककर जो बैठे साँस लेने को,
और रात अपनी बाँहों में तुझे भरने को आए,
मेरा ज़िक्र कर लेना, मेरा ज़िक्र कर लेना ज़रा सा,

तुम जो बैठो छत पर बालों को सहलाते हुए,
और ठंडी हवा तुमको छु जाए,
भीगो जो तुम बारिश में अपनी नीली चप्पल में,
और बूंदे तुम्हारा बदन नम कर जाए,
मुझे सोचना तुम, मुझे सोचना तुम ज़रा सा,

(Read another sad poem: राह में वो टकरा गयी)

चलो तुम सड़कों पर, बैठो जो बस में,
ढूँढे जो तुम्हारी आँखे मुझे, गुज़रे लम्हे तुम्हे याद आयें,
हाथ तरसे थामने को मेरी बाँहें,
और तुम्हे मेरी नादानियाँ याद आयें,
तो मेरी राह तकना, मेरी राह ताकना ज़रा सा,



जो कभी तुम मेरा रास्ता देखो,
मुझे हो देर और तुम्हारा दिल घबराए,
माँगना खुदा से मेरी सलामती, माँगना थोड़ी मोहल्लत,
ना मिलने पर कोई जवाब जो तुम्हे रोना आए,
तो फ़िक्र करना, फ़िक्र करना तुम ज़रा सा,

जो मैं कभी ना लौटू,
और मेरा जिस्म मेरा आँखरी खत लाए,
मेरी कब्र पर दो फूल रख देना,
शायद वो मुझे जन्नत में मिल जाए,
कभी ऐसे ही किसी दिन याद करके मुझे,
रो लेना, रो लेना तुम ज़रा सा…

-N2S
06072013

[Photo by Aperture Vintage on Unsplash]

राह में वो टकरा गयी (When She Met On Streets)

girl walking on road
“कल ऐसे ही अगर फिर से हम टकरा जायें किसी राह पर,
तो यूँही फिर से पहचानकर कुछ ना कहना”

हवा के ठंडे झोके सी,
आज वो राह में टकरा गयी,
वही बर्फ सा सफेद चेहरा,
गहरी काली आँखें और दिल चीर देने वाली सादगी,
उसने देखा मेरी ओर यूँ की जैसे कोई पहली पहचान हो,
और मेरे लिए तो जैसे लम्हा ही ठहर गया हो,
लफ्ज़ कुछ ना आए ज़ुबान पर,
बस एक हँसी ही होंठों पर आ सकी,
कहता भी तो क्या, नाम भी क्या लेता,
जिससे कभी ना एक पल की ही मुलाक़ात हो सकी,

उसे जाते हुए देखा तो एक पुराना वाक़या याद आया,
वक़्त में कुछ साल पहले, जब मैं ऐसा ही आवारा था,
बस में बैठा में ना जाने कौन सी उधेड़बुन में खोया था,
के वो मुझसे कुछ फ़ासले में बैठ गयी,
मैं हुआ थोड़ा बेचैन पर वो एक कहानी पढ़ने में मशगूल थी,
एक एक कर सब मुसाफिर बस से उतरने लगे,
और यह समय का दस्तूर ही था के अब हम दोनो ही थे,

जी हुआ के उठके कह दूं,
की क्या कुछ पल के लिए ही सही मैं तुम्हारा हमसफ़र बन सकता हूँ,
तुम्हे पा सकूँ, मैं इतनी बड़ी ख्वाहिश रखने से भी डरता हूँ,
तुम मुझे मिल जाओ, यह सोच के ही दिल रुक जाता है,
पर ना जाने क्यूँ तुमको देखकर रूह को सुकून मिलता है,
भरता नही मन, बस तुमको आसमान में सजाने को जी चाहता है,
लोग ना जाने कैसे तुमसे बात कर लेते हैं,
मेरा तो गला ही तुमको देखकर सुख जाता है,
यह सोचके भी मैं हैरान हूँ की लोग तुमसे हाथ मिलाकर भी,
कैसे ज़िंदा रहते हैं,
तुम अगर छू लो मुझे तो,
मुझे डर है शायद मेरा खून नसों में बहना छोड़ दे,



नहीं करता मैं उम्मीद तुमसे किसी भी एहसान की,
बस दो पल के लिए सही मुझे देखकर हंस दो,
मैं कुछ भी नही कहूँगा, तुम्ही कुछ गुफ्तगू कर लो,
अल्फाज़ों की किसे पड़ी है, मैं तो बस तुमको सुनना चाहता हूँ,
तुम्हारे साथ शायद हर लम्हा जैसे कोहिनूर सा कीमती हो,
अगर मिल सके खुद को बेचकर भी थोड़ी मोहल्लत,
तो दो पल और खरीद लूँ,
खैर जाने दो, मेरे ये शब्द मेरी हसरतों तक ही सीमित रह जाएँगे,
तुम्हारी आई मंज़िल तुम उठकर चल दी,
और मैं तुमको जाते देखकर यही सोचने लगा,

तुम मिली नही मुझे, ये शायद मेरी तक़दीर है,
मैं मिला नही तुम्हे, ये तुम्हारा नसीब है,
और कल ऐसे ही अगर फिर से हम टकरा जायें किसी राह पर,
तो यूँ ही फिर से पहचानकर कुछ ना कहना,
मेरा पास कहने के लिए होगा बहुत मगर, तुम उसकी हक़दार नही हो…

-N2S
29072013