बचपन (Childhood)

two-school-kids
“बारिश में जो मैं निकलूं,
बीघे बसतों में बचपन गुन्छे”

बस यूँही ऐसे, कोई ना कुछ पूछें,
बारिश में जो मैं निकलूं,
बीघे बसतों में बचपन गुन्छे,
सड़क पर दौड़ुँ, जूतों में गीले मोजे,
चश्मे पर पानी की बूंदे, जुल्फे माथे को ढक लें,
मेरे यार का टूटा बैट, चलो साथ मिलकर गेंद ढूँढे,
हाथ छोड़कर की साइकल की सवारी,
घुटने की चोट पर डेटोल और रुई लगाई,

सफेद पन्नो पर सिहाई फैले,
छोटू मेरे बिस्तर को फिर गीला करे,
धूप में सूखने को आम की कैरी रखी,
डॅडी की तीन रुपए की बीड़ी से मिले दो रुपये छूटे,
शाम को गुज़रे जो आइस-क्रीम वाले का ठेला,
लेना है लाल बर्फ का गोला,
गुलाबी होंठों का लाल रंग,
सिर्फ़ दो पल ठहरे,
छत पर करना है टीवी का अंटीना सीधा,



पड़ोस में मोटू अंकल की बेटी की दोमुँही चोटी,
हँसती है जो करके आँखे छोटी-छोटी,
ना जाने क्यूँ अच्छा लगता है उसे मेरी पीठ पर चढ़ जाना,
मेरे बाल बिगाड़कर मेरे गाल खींचना,
दौड़ने में टूटी मेरे चप्पल की फिती,
ना जाने कब आएगी सनडे की छुट्टी,
गर्मियों में जामुन के पेड़ों पर हमारी वानर सेना टूटी,
नये किताबों की खुशबु मीठी मीठी,

टीचर का डाँटकर मुर्गा बनाना
अच्छी लगती है रिसेस की घंटी,
टिफिन में मैगी नही तो जाम और रोटी,
रात को मम्मी की गोद में ना जाने कब नींद आए,
की कल सुबह फिर निकलना है, बिना किसी से पुछे…

-N2S
28052013

Kaash Main Bada Na Hota

Empty Swings
“काश मैं कभी बड़ा ना होता,
तो शायद बचपन की खुशियाँ रद्दी में ना जाती…”

बताया था किसी ने की उम्र के इस पड़ाव में
जेब में सिक्के नही होते,
खुशियों की कीमत हो जाती है इतनी की
वे ठेलों या गली-कूचों में नही बीकते,
कभी हथेली से भी बड़े दिखते थे जो सिक्के,
अब वे उंगलियों में गुम हो जाते हैं
पर एक-एक कर गुल्लक में नही गिरते,

अब कोई मेरी पेन्सिल नही चुराता,
नोटबुक के आँखरी पन्ने को कोई खराब नही करता,
शाम को नही निकलता मैं खेलने,
की ज़िंदगी की छुपन-चुपाई में छिपे बैठे हैं
सब यहीं कहीं,
चले जाते हैं कुट्टी करके जो यार अब,
बटी करने वापिस नही आते,



रात में जो कभी नींद आ जाती है फर्श पर,
तो फर्श पर ही सुबह होती है,
की कंधे पर रखकर
बिस्तर पर सुलाने कोई नही आता,
जो हाथ संवारते थे बाल मेरे,
आज उन हाथ में मेरा सर नही आता,
अच्छा भी है की कोई कान नही खींचता,
कोई मुर्गा नही बनाता,
पर जो अब ग़लती करता हूँ मैं,
कोई समझाकर ग़लती ठीक करने की मोहल्लत नही देता,

घर की चीज़ें खिलोना नही बनती,
शब्द गीतों में तब्दील नही होते,
नाचने के लिए मौकों की इज्जाज़त लेनी पड़ती है,
और दीवारों पर रंग नही चढ़ता,
कभी सोचता हूँ की काश मैं कभी बड़ा ना होता,
तो शायद बचपन की खुशियाँ रद्दी में ना जाती…

-N2S

मैं जा रहा हूँ स्कूल फिर से

school corridor
“कमीनों कल स्कूल आ जाना,
क्या करूँगा तुम्हारे बिना स्कूल कॉरिडर पे अकेला खड़ा होके…”

भाड़ में जाए सब कुछ, मैं जा रहा हूँ स्कूल फिर से,
अब नही झेली जाती ऑफीस की झिक-चीक,
घरवालों की खीट-पीट,
मैं चला स्कूल फिर से,
सफेद शर्ट सीला लूँगा, नीली पॅंट तो पहनता ही हूँ वैसे,
छोटे भाई से ले लूँगा टाइ उधार,
काग़ज़ों के जहाज़ बनाने है आज से,
पहली बेंच पे अब नही बैठूँगा मैं,
बॅक बेंचस होंगी मेरा ठिकाना अब से,

पढ़ाई अब नही करूँगा मैं,
ना ही रात भर जगूंगा फ़ॉर्मूला रटके,
किस लिए बर्बाद करूँ स्कूल के प्यारे दिन,
उन चीज़ों पे जिनका कल कुछ सरोकार नही मुझसे,
अब तो बस स्कूल की सीडीयों पे बसेरा होगा,
बाकी बातें लाइब्ररी में बैठके होंगी,
ज़िंदगी से ऐसे सबक मिल चुके हैं के सब टीचर्स से यारी होगी,
रोज़ क्रिकेट मैचेस होंगे, क्लास में अंताक्षरी होगी,



एक तरफ़ा प्यार में अब किसी का दिल टूटेगा नही,
कुछ इस तरह इज़हार-ए-दिल करेंगे की उसको भी हमारी फ़िक्र होगी,
अपना खुद का बॅंड भी बनाना है,
कॉपियों के पिछे चित्रकारी करनी है,
लंच के लिए टीफिन भी तैयार करना है,
पर चाहे कितनी भी छुट्टी की घंटी बजे मुझे घर नही जाना,
मुझे पास होकर बड़ी क्लास में नही जाना,

एक बार स्कूल की चार दिवारी के बाहर जाकर देख चुका हूँ,
यहाँ दोस्त मतलबी बन जाते हैं,
यहाँ दुनियावाले बहुत बुरे बन जाते हैं,
सब कुछ चाहने वालों मेरे हिस्से की कामयाबी भी तुम ही ले लो,
मैं तो चला स्कूल फिर से,
बस इतनी सी इंतेज़ा है अपने स्कूल के यारों से,
कमीनों कल स्कूल आ जाना,
क्या करूँगा तुम्हारे बिना स्कूल कॉरिडर पे अकेला खड़ा होके…

-N2S