The Man

silhouette of a man
Being a man is making the choice between your happiness and the happiness of your loved ones and always choosing the latter. It is about not crying when your heart is broken. It is about being silent when you are hurt the most. It is about silently checking on the doors and windows if they are properly locked when everyone else is peacefully sleeping. It is about taking the last piece of the pie until everyone else is filled. It is about working hard everyday, taking all the stress of the job, bearing the all shit of boss and office politics just because you can’t afford risks. It is about checking upon family and calling and calling them until you know they have safely reached. In the end you would know that nobody will realize what pain you went through but it doesn’t matter as you didn’t do all that for recognition. When you will be done with the life and you are about to go, you would look back at your loved ones one last time to check if everyone is OK…because you are…THE MAN…
-N2S
01012020

बस खिलौने कम हैं (Bas Khilaune Kam Hain)

closeup photo of white petaled flower showing beauty of life

अब अश्क सवाल नहीं पूछते,
वजह ढूंढते हैं बह जाने को,
हम बुद्धू हैं कि ,
यह समझ नहीं पाते,
मतलबी लोग नहीं, बस आलसी हैं,
साँसों की गिनती तो पहले जितनी ही है,
अब बस खिलौने कम हैं पाने को,



कल का हस्र देख, आज थोड़ा और जी लूँ ,
की कल से कम ही तुलेंगी खुशियां
ज़िन्दगी के तराज़ू पर,
हर दिन गुज़र जाता है सिकवे करते-करते,
हर शाम एक और वजह मिल जाती है खो जाने को,
वक़्त लाया तो है तरीके बहुत बातें कहने के लिए,
बस अलफ़ाज़ कम रह गए हैं सुनाने को,
आज भी इसी आस में सो जाते हैं,
की कल कोई उठाएगा,
स्कूल जाने को…
-N2S
02012019

एक चेहरा याद आया (Recalled A Face)

view of street with crowd in sunset
“मैने मुड़ कर देखा तो वो चेहरा भीड़ में घूम गया,
इस बार गया तो याद ना आया…”

आज राह चलते दिखा तो याद आया,
कुछ अजीब सा हुआ दिल में,
एक लम्हा जहन में दौड़ आया,
वो चेहरा था कुछ जाना पहचाना सा,
शायद बिता बीच में अरसा था,
पर ना जाने क्यूँ, यूँही ये ख़याल आया,
आज दिखा तो एक चेहरा याद आया,

वक़्त भी चलता है कभी,
कभी ये दौड़ता है सरपट घोड़े की दौड़,
बदल गया था शायद वो आँखों पर,
जिस पर यादें लड़ रही थी मेल करने का खेल,
बस लगी झड़ी कुछ लम्हो की,
तो दौड़ पड़ी यादों की रेल,

याद आए वो दिन, वो बातें कुछ पुरानी सी,
सालों पुरानी, किसी बुढ़िया के बालों सी,
बचपन की नादानी थी वो शायद,
या वक़्त ही कुछ ऐसा रहा होगा,
कुछ धुंधली सी यादों से जुड़ा लगता है,
कोई बचपन का यार ही होगा,



कहूँ क्या, ऐसे ही एक सवाल आया,
आज दिखा तो एक चेहरा याद आया,
पूछूँ क्या के मेरे हाल से फ़र्क किसी को पड़ेगा नहीं,
भला होगा तो हंस देगा और
अगर दर्द में होगा तो हँसी में छुपा देगा,

नज़र होगी रास्ते पर और मन में हज़ार हिसाब होंगे,
फिर एक भूली हुई याद का शिरा पकड़कर दोनो हसंगे,
जानता तो वो भी होगा की यह बात भी भुला दी जाएगी,
हमारे मुड़ते ही यादों के रेगिस्तान में दफ़न हो जाएगी,

क्यूँ होता है ऐसा की चेहरे लम्हो की दुकान पर बेच दिए जाते है,
जब जी रहे थे वो पल हम,
वो शख्स बहुत करीब था दिल के,
बातों में शामिल, प्यारा था वो भीड़ से,
पर जब ज़िंदगी के बाज़ार में लम्हे नीलाम हुए,
वो हसीन चेहरे वाले सबसे पहले बिक गए,



आज दिखा तो एक चेहरा याद आया,
चलो फिर मिलेंगे कभी,
ये तो वो भी जानता है के फिर कभी नही,
मिलेंगे अगर तो सिर्फ़ चेहरे होंगे,
एक दूसरे को तोलते बनिये होंगे,

कभी सोचता हूँ की जब मिलते ही है लोग बिछड़ने के लिए,
कुछ पल हँसने और फिर आगे बढ़ने के लिए,
कोई किसी को दोष ना दे चेहरा भूल जाने पर,
रंग बिरंगे पंखों वाले पंछी भी मिलते है एक दिन के लिए,
बैठकर पेड़ पर कुछ देर, निकल पड़ते है अपनी मंज़िल के लिए,
पंछी ही हैं हम भी शायद,
इसलिए तो जब वक़्त आता है तो उड़ जाते है,

-N2S
04032012

पढ़े लिखे गधे (Padhe Likhe Gadhe)

graduate boy
“एमबीए करने के बाद एक बड़ी सीख ज़रूर मिली”

आज ऐसे ही अपनी डीग्रीयों पर नज़र पड़ी तो,
तो पाया की खुद को गधा बनाने के लिए बीस साल पढ़ना पड़ा,
बचपन में नर्सरी स्कूल दौड़ा,
ए बी सी डी का मतलब पता ना होता था पर माइ बेस्ट फ्रेंड पर निबंध लिखना पड़ा,
खुद से भारी वज़न के बस्ते लेकर गया,
क्लासवर्क तो कभी समझ नही आया और होमवर्क के लिए ट्यूसन लगाना पड़ा,

कभी जो मिले परीक्षा में अंडे,
तो घर पर लगी क्लास और स्कूल में पड़े डंडे,
अध्यापकों ने भी बहुत ज़ोर लगाया,
कभी बेंचों पर हाथ खड़ा करवाया तो कभी सबके सामने मुर्गा बनाया,
बोर्ड की पढ़ाई करते करते आँखों पर चस्मा लग गया,
नंबर तो अव्वल आए नही पर क्लास का डबल बॅटरी बन गया,
सोचा चलो थोड़ा और मेहनत करेंगे,
डॉक्टर ना बन सके तो इंजिनियर तो बन जाएँगे,
पर इंजिनियरिंग की सीट के लिए नंबर ना आया,
ना जाने कितने टेस्ट दिए, ना जाने कितनो का घर भर आया,



कॉलेज से हमें कोई शिकायत ना थी,
जब लड़कियों पर थीसिस लिखे तो क्या पास होते,
बाइक पर बसों का पीछा करते और क्लास से नदारद रहते,
ऐसे ही जैसे तैसे चलो ग्रेजुएट तो बन गये,
साथियों की तो हो गयी शादियाँ और हम कॅट के कॅंडिडेट हो गये,
शायद बाप के पैसे आँखों पर खटक रहे थे,
पढ़ाई में पहली ही किए थे जो लाखों खर्च, कुछ कम लग रहे थे,
एक महान कॉलेज में लाखों देकर प्रवेश लिया,
जहाँ परीक्षा पत्र परीक्षा से एक दिन पहले मिल जाता था,

बाप ने मेहनत से एक एक कर के की थी जो कमाई,
उसे दो सालों में हमने कभी सिगरेट के छल्लों में तो कभी
दारू के ठेके में बहाई,
एमबीए करने के बाद एक बड़ी सीख ज़रूर मिली,
जितना पैसा बर्बाद किया कोर्स में उतने में काश दो ट्रक ले लेता,
प्लेसमेंट छोड़ो खुद की कंपनी खड़ी कर लिया होता,
अब इतनी पढ़ाई के बाद,
जब खुद से अच्छी हालत गली के कुत्ते की देखी तो,
बस एक ख़याल आया,
ऐसे ही गधे की तरह जीने के लिए बीस साल पढ़ना पड़ा और फक्र से कहलाए
पढ़े लिखे गधे…

-N2S
17042018

बस एक सच (The Only Truth)

a hand stretched towards sunset
“मंज़िल तो सबकी यही है बस ज़िंदगी बीत गयी यहाँ आते-आते”

रिस रिस कर मिलती खुशियों को समेटते हुए मैं चला जा रहा था,
दौड़ती भागती इस दुनिया में मैं भी तेज़ कदमों से चला जा रहा था,
दिल था बेचैन, वजहें हज़ार थी,
माथे पर सिकन की लकीरें सवार थी,
रुकना पड़ा राह में के एक जनाज़ा गुज़र रहा था,
चार कंधों पर लेटा, सफेद कफ़न में लिपटा,
आँखरी सफ़र पर चला जा रहा था,

जाने किस वजह मेरे कदम रुक गये,
गौर से देखने की हसरत हुई उस गुमनाम को,
जिसके पीछे लोगों को हुज़ूम चला जा रहा था,
शायद होगी कोई बड़ी हस्ती, जिसने खूब नाम कमाया होगा,
यूँही लोग नहीं होते शरीक आजकल मज़ारों में,
आँसू बह रहे थे कुछ के आँखो से,
फ़र्क करना मुश्किल था के असली थे या फिर रोज़ के,

पूछने पर पता चला के कोई बड़े नेता थे,
जिनका था बड़ा रसुक, जिनके चेले अभिनेता थे,
जिनकी थी आलीशान कोठियाँ, दो-चार महल भी थे,
इनको विदा करने आए चेहरों में बड़े-बड़े नाम शामिल थे,
आँखिर गया क्या इनके साथ जिनके पास सब कुछ था,
ये तो बेचारे कफ़न भी साथ ना ले जा सके,
आँखिर फिर ये दौड़ क्यूँ जब मौत ही लिखी है नसीब में सबके,



मेरा आँखरी सफ़र भी तो चार कंधों में ढोया जाएगा,
लगाकर मुर्दा तन को आग, गंगा में बहा दिया जाएगा,
सोच में डूबा था के ऐसा लगा जैसे नेताजी नीद से खड़े हो रहे हो,
मैने आँखें मसली की शायद मेरा वहम हो,
पर सफेद लिबास में लिपटे नेताजी मुस्कुराते मेरे सामने खड़े थे,
और सड़क किनारे लोग उनकी लाश को कंधा दिए जा रहे थे,
मुस्कुराते हुए वे बोले,”बड़ी भीड़ है मेरे जनाज़े पर”,
“जो चला सारी ज़िंदगी अकेला उसकी मज़ार पर इसकी उम्मीद ना थी”,
“आज तो वे भी आए है जो कभी ना आए मेरे जीते जी”,
“शायद देखने आए होंगे की बात सच है या झूठी”,
“खैर जाने दो, शिकवा गीला करते तो सारी ज़िंदगी बीत गयी”,
“जब साथ तो खुद की पहचान तक ना गयी तो इन रिश्तों से क्या रौस करूँ”,

मैने पूछा की,”जब मंज़िल ही आपकी यही थी तो ये भाग दौड़ क्यूँ की”,
“क्यूँ बहाया इतना पसीना, क्यूँ जलाया खुद की सासों को?”,
एक हल्की मुस्कान के साथ नेताजी बोले,
“काश बस यह सच पता होता”,
और फिर उन्होने एक गुमनाम कवि की आँखरी पंक्तियाँ दोहरा दी,

“मंज़िल तो सबकी यही है बस ज़िंदगी बीत गयी यहाँ आते-आते”…

-N2S
10092012

[Photo by Billy Pasco on Unsplash]