कल का इंतज़ार

Man looking at river
उम्र के इस मोड़ पे बचपन सी नादानगी की छूट नहीं मिलती,
और न ही बूढ़ों की तरह वरिष्ठ नागरिकता का कोटा,
हर नज़र तुम्हे नापति है, तोलती है,
और लाख भला करना चाहो,
अपनी ज़रा सी असहजता का गुन्हेगार तुम्हे ही ठहराती है,
रिश्तेदारी सिर्फ लेन-देन बनकर रह गयी है और यारी तारीखों की मोहताज़,
झूठ जरुरी हो गया है और जी-हज़ूरी आदत,

शिकार भी सब है यहाँ और सभी ही हैं शिकारी,
ज़िन्दगी सांसें गिनती की ही देती है,
उसकी नहीं होती हैसियतों से कोई देनदारी,
न जाने किस कल के लिए बचा रखी है फुर्सत हर एक ने,
आज में घिस-घिसकर जीते हैं, सिर्फ एक भुलावे के लिए,
घडी तो एक वही रख़ी है बरसों से,
बस बैटरी-फीते बारी बारी बदल दिए जाते हैं,
इस कल के इंतज़ार में हम न जाने कितने आज जलाये जाते हैं…
-N2S
08012018

साला विलायती

drinks

उसे नाज़ था अपनी इम्पोर्टेड मर्सिडीज पे,
मैं अपनी मारुती में ही सफर कर लेता था,
वो बोला तुझे क्या पता अमेरिका में इमारतें कितनी ऊँची हैं,
मैंने कहा मेरे पहाड़ों से तो छोटी ही होंगी,

वो इतराकर बोला मेरी कमाई अमरीकी डॉलरों में है,
मैंने कहा दो वक़्त की रोटी रुपयों में भी खरीदी जाती है,
उसने फिर अपनी आलिशान कोठी दिखाई जो
शायद मशहूर होटलों को भी बोना कर देती,
मैंने कहा पर ये तो खाली है,

हम दोनों ऐसे ही अपनी हैसियतों पर जुबानी जंग लड़ रहे थे की,
शमशान में दो चिताओं को जलता पाया,
कुछ देर उनका जलता देख मेरा दोस्त बोला,
मैं साला भूल गया था की मुझे लकड़ी पे ही जलाया जायेगा सोने पे नहीं,

मैंने उसके कंधे पर हाथ रखा और कहा,
ओये राजा भोज तू इतनी जल्दी नहीं मरेगा, चल तुझे चाय पिलाता हूँ,
वो झट से बोलै, चाय छोड़ मैं तुझे अंग्रेजी शराब पिलाता हूँ वो भी विलायती,
“साला विलायती”
-N2S
22072014



कितना कमाता हूँ मैं (Kitna Kamaata Hoon Main)

different types of bank notes
कदमों की रफ़्तार भले तेज़ नहीं पर,
सपनो पर भरोसा आज भी है,
कुछ दूर हूँ शुरूवात से मगर,
खुद पर यकीन आज भी है,
ग़लत ना होकर भी दुनिया के लिए क्यूँ ग़लत हूँ मैं,
उनको तो बस दिखता है नोटों का वजन, जिन पर कुछ हल्का हूँ मैं,
क्यूँ वो नहीं पूछते की कैसा हूँ मैं?
क्यूँ हर सवाल हँसकर पूछता है, की कितना कमाता हूँ मैं ?

सोचता था की चेहरे पढ़ने से औरो के दिलों को समझ जाउँगा,
क्यूँ है दुनिया ऐसी शायद किसी को समझा पाउँगा,
पर अब जो पढ़ सकता हूँ चेहरे तो बस ये जानता हूँ,
कोई नहीं देखता कितने कदम चला हूँ मैं,
सब ये देखते हैं, की कितना कमाता हूँ मैं,



एक दीवार चढ़ने पर लगी थी चोट मुझे,
उसके कुछ निशान रह गये थे,
लंगड़ा के चलता हूँ तो कोई ये नहीं पूछता की कैसे गिरा मैं,
सब को ये जानना है की कहाँ खड़ा हूँ मैं,
कभी सोचता था मिलेंगे दोस्त जो कहीं राह पर,
दिल की हर बात कहेंगे,
कुछ किससे पुराने, कुछ नये, साथ बैठ कर हँसेंगे,
पर कोई मिलने पर नहीं पूछता की, कैसा हूँ मैं,
सबको जानना है की कितना कमाता हूँ मैं,

मानता हूँ की इस दुनिया में एक इंसान की पहचान,
उसके उँचे औहदे से होती है,
जहाँ लोग बस देखते हैं कार की कीमत,
बातें हसियत से शुरू होती है,
क्यूँ सबको चाहिए ज़रूरत से ज़्यादा?
जब सबकी मंज़िल छे फीट ज़मीन है,
क्यूँ किसी के गिरने पर लोग खुश होते हैं?
और मिल जाए थोड़ी शोहरत तो जल उठते हैं,
क्यूँ नहीं समझते की आए थे खाली हाथ?
और साथ तो नाम भी नहीं जाएगा,

जब कहता हूँ की मैं बस अपने सपनो को जीना चाहता हूँ,
कर रहा हूँ कोशिश की उनको एक बार जी सकूँ,
किसी के सपनो को समझना तो दूर, लोग होठों को एक तरफ खींच लेते हैं,
कुछ तो हँसते है पीछे, कुछ तो मुँह पर ही हँस देते हैं,
क्या फ़र्क पड़ता है की मेरे पर्स में कुछ नोट कम है,
नहीं चाहिए मुझे सोने की थाली जब, मुझे भूख कम है,
चेहरे पर एक मुस्कान और दिल में इतनी तो गैरत है,
की ना पूछूँ किसी की हसियत जब तक उसमें हसरत है,



नहीं करता मैं उम्मीद सबसे भले की,
ये तो शायद बेमानी है,
पर बस एक मासूम सवाल है दोस्तों,
में तो कभी बदला नहीं,
फिर क्यूँ पूछते हो की कितना कमाता हूँ मैं?,
फिर क्यूँ पूछते हो की कितना…

-N2S
11022012